रूस और यूक्रेन के विवाद का सबसे बड़ा कारण यही है कि
यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है और रूस इसे नाटो का सदस्य बनने से रोकना चाहता है नाटो एक अमेरिका समेत पश्चिमी देशों का एक समूह है यह एक सैन्य गठबंधन है जो खासतौर पर भूत का दुश्मन माना जाता है रूस यह नहीं चाहता है कि उसका पड़ोसी देश नाटो का मित्र देश बन जाए। इस पूरे विवाद ने नए युद्ध का रूप ले लिया है जिसने एक से ज्यादा देश युद्ध में हिस्सा ले सकेंगे इससे तृतीय विश्व युद्ध का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
अब स्थिति यह है कि पूरी दुनिया को इस युद्ध ने दो हिस्सों में बांट दिया एक तरफ रसिया है जिसके पास चीन जैसे बड़े देश खड़े हैं तो वहीं पर यूक्रेन के साथ नाटो देशों के सदस्य हैं जबकि भारत ने इन बातों से इंकार करते हुई अपने पक्ष को निष्पक्ष रख लिया है ना तो भारत रूस के साथ है ना यूक्रेन के साथ शांति वार्ता को महत्व देते हुए उन्होंने वोट देने से इनकार कर दिया।
नाटो 130 देशों का एक मिलिट्री ग्रुप है जिसमें अमेरिका फ्रांस जर्मनी जैसे बड़े देश शामिल है रूस आता है कि उसका पड़ोसी देश यूक्रेन भी उस नाटो का सदस्य बने जबकि पहले से ही रूस के कई पड़ोसी देश नाटो के करीबी रहे हैं।
यदि यूक्रेन भी नाटो देशों का सदस्य बन जाता है तो रूस पूरी तरह से अपने दुश्मनों से चारों ओर से यह जाएगा। जिसमें अमेरिका जैसी बड़ी देश रूस पर हावी होने लगेंगे। अमेरिका भी यही चाहता है कि उसके पड़ोसी देश जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे वह अब नाटो का सदस्य बन जाए।
ताकि अमेरिका उन देशों का इस्तेमाल रूस पर दबाव बनाने के लिए कर सकें। नाटो का मतलब अमेरिका है नाटो में शामिल होना मतलब अमेरिका के साथ जाना होता है यदि रूस के पड़ोसी देश नाटो में मिल जाते हैं तो अमेरिका रूस के बहुत करीब पहुंच जाएगा।
इसे आप इस नक्शे की मदद से समझी
नाटो रसिया से एक कदम ही दूर है यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया तो रसिया उस पर हमला कर देता है समझौते के तहत नाटो देशों यह हमला अपने खिलाफ मानेंगे फिर वह यूक्रेन की सैन्य मदद भी करेंगे। यूक्रेन की भूमि पर पहुंच जाएंगे।
जो रसिया के बहुत ही गरीब होगा रसिया के क्रांति के नायक ब्लादिमीर लेनिन ने कहा था।
रूस हमेशा से ही यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के लिए खिलाफ ही रहा है क्योंकि हीरोस क लिए यूक्रेन सबसे महत्वपूर्ण देश है। यूक्रेन रशिया की पश्चिमी सीमा पर मौजूद है जब वर्ष 1939 से 1945 तक की आज तक चले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अदृश्य पर हमला हुआ था तब यूक्रेन हीं वह क्षेत्र था जहां से रसिया ने अपनी सीमा की सुरक्षा की थी लेकिन अगर यूक्रेन नाटो के साथ मिल गया तो रशिया की राजधानी मॉस्को पश्चिमी देशों के लिए सिर्फ 640 किलोमीटर दूर रह जाएगी जबकि फिलहाल यह दूरी लगभग 1600 किलोमीटर है
आपके मन में यह सवाल भी होगा कि यूक्रेन नैटो के साथ आखिर जाना क्यों चाहता है अगर वह पारंपरिक रूप से रसिया के साथ एलाइंड रहा है सोवियत संघ का हिस्सा रहा है तो फिर वह यूरोपियन यूनियन में क्यों गया और नाटो में क्यों जाना चाहता है इसे समझने के लिए आपको इतिहास में 100 साल पीछे जाना होगा वर्ष 1917 से पहले तक रशिया और यूक्रेन रशियन अंपायर यानी रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे लेकिन 1917 में राष्ट्रीय की क्रांति के बाद यह साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया उस जमाने में भी जब यह रशियन साम्राज्य था तब जो कीव शहर है उसकी राजधानी हुआ करता था हालांकि यूक्रेन मुश्किल से 3 साल इसके बाद आजाद रहा और वर्ष 1920 में सोवियत संघ में शामिल हो गया हालांकि यूक्रेन के लोगों में एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने की इच्छा हमेशा से जीवित रही और वह आज भी वर्ष 1951 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ जब सोवियत संघ टूटा तब इसमें से 15 नए देश बने जिनमें यूक्रेन था यानी असल मायनों में यूक्रेन को वर्ष 1951 में असली आजादी मिली लेकिन यूक्रेन शुरुआत से इस बात को समझता था कि वह कभी भी अपने दम पर रूस का मुकाबला नहीं कर सकता और अगर कभी भविष्य में रसिया ने उस पर हमला कर दिया तो वह अपना बचाव भी नहीं कर पाएगा इसलिए वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है जो उसकी स्वतंत्रता को हर स्थिति में सुनिश्चित करें। और उसे रसिया से भी बचाए और इस काम के लिए नाटो से अच्छा विकल्प है फिलहाल उसके लिए नहीं है इसीलिए पहले उसने यूरोपियन यूनियन को ज्वाइन किया वह यूरोपीय देशों में शामिल हो गया और अब वह नाटो मैं जाना चाहता है ऐसा वह इसलिए कह रहे हैं कि यूक्रेन के पास रूस तरह बड़ी सेना है और ना ही उसके पास आधुनिक हथियार हैं अपने आप को बचाने के लिए यूक्रेन के पास इस समय लगभग 1100000 सैनिक हैं जबकि रसिया के पास और 29 लाख सैनिक यूक्रेन के पास 98 लड़ाकू विमान है और रूस के पास लगभग 1500 को विमान है अटैक हेलीकॉप्टर्स थैंक्स और बख्तरबंद गाड़ियों के मामले में भी रूस के पास यूक्रेन से कहीं ज्यादा ताकत है।
सोवियत संघ के विघटन से पहले भी रसिया और यूक्रेन काफी मजबूत और तब क्षेत्रफल के मामले में रसिया के बाद यूक्रेन सबसे बड़ा देश था और अर्थव्यवस्था के मामले में यूक्रेन एक बहुत बड़ी ताकत है इसके अलावा आज भी पूरी दुनिया में गेहूं का 30 %उत्पादन अकेले यह दो देश करते हैं तो अकेले इन्हीं 2 देशों में होता है और इसकी वजह से यह भी कहा जाता है और यूक्रेन तो एक बहुत बड़ा ब्रेड बास्केट यूक्रेन भी जानता है कि अगर उसने रसिया के खिलाफ जाने की कोशिश की तो रसिया उस पर हमला करके यूक्रेन को दुनिया के नक्शे से मिटा देने की क्षमता रखता है और उस पर अपना कब्जा भी कर लेगा ।जैसा वर्ष 2014 में भी रसिया कर चुका है तब क्राइमिया या यूक्रेन के अधिकार क्षेत्र में आता था यूक्रेन के पास था । लेकिन उस समय यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति ने यूरोपीय यूनियन के साथ एक व्यापारिक समझौता कर लिया जिससे नाराज होकर रसिया ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया और उस समय पूरी दुनिया देखती रह गई कोई कुछ नहीं कर पाया और आज भी इस इलाके पर रशिया का ही कब्जा है इस पूरी कहानी में अमेरिका की भूमिका भी आपको जरूर समझनी चाहिए अमेरिका ने अपने 3000 सैनिकों को यूक्रेन की मदद के लिए भेज दिया है और उसकी तरफ से भरोसा दिया है कि वह यूक्रेन की हर संभव मदद करेगा लेकिन सच यह है कि अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन इस समय काफी परेशानी में उनकी लोकप्रिय लगातार गिरती जा रही है और वह सिर्फ यूक्रेन का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इस्तेमाल क्यों करना चाहते हैं वही स्थिति का इस्तेमाल करके अपनी छवि को मजबूत करना चाहते हैं पिछले वर्ष आपको याद होगा अफ्गानीस्थान से अमेरिका को अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा था बल्कि एक एक अमेरिका की सेना अफगानिस्तान को छोड़कर भाग गई और इसके लिए जो बाइडन की बहुत आलोचना हुई थी उनकी लीडरशिप की बहुत आलोचना हुई थी और जो बाइडन इस मामले में एक कमजोर नेता की तरह दिखाई दिए थे अब जो गार्डन को अपनी लोकप्रियता सुधारने है और दुनिया को यह भी बताना है कि वह कमजोर नहीं है वह बड़े सक्षम नेता है अपनी छवि चमकाने के लिए वह बार-बार ऐसे मौकों की तलाश में जैसे कि यहां यूक्रेन में हो रहा है इसके अलावा ईरान में भी अमेरिका कुछ हासिल नहीं कर पाया और तमाम प्रतिबंधों के बावजूद नॉर्थ कोरिया भी लगातार मिसाइल परीक्षण करता जा रहा है इन घटनाओं से अमेरिका की जो सुपर पावर वाली छवि है उसे नुकसान पहुंचाया और इसीलिए जो बाइडन यूक्रेन और व्यवहार से इसकी आई करना चाहते हैं और दुनिया को एक बार फिर से बताना चाहते हैं कि पूरी दुनिया के सबसे बड़े सरपंच वही है और वही असली ताकत है और वही सुपर पावर है और वैसे भी अगर आप देखें इस पूरे मामले में जो महाशक्ति है इस समय मेरे इस दुनिया में एक ही है वह अमेरिका है और दूसरी अच्छी बात यह है की और इसमें चीन और अमेरिका आमने सामने आ गए अमेरिका का समर्थन किया है यह बड़ा सवाल है वह इसलिए क्योंकि यूरोपीय देश अपनी जरूरत की एक तिहाई गैस के लिए रसिया पर निर्भर है रूस ने सप्लाई को रोक दिया तो इन देशों में बिजली का भयानक संकट खड़ा हो जाएगा और हो सकता है कि संकट देशों की सरकारों को बर्खास्त करवा दें क्योंकि इन देशों के जो लोग आम जनता जो है वह संवेदनशील है छोटे-छोटे मुद्दों पर अपनी सरकार को गिरा देती है यूरोप के देशों में मौसम ठंडा रहता है और यहां पिछले कुछ दिनों में बिजली के दाम 600 % तक बढ़ चुके सूची में गैस की सप्लाई रोक दी तो अपना गुजारा कैसे करें यार आप समझने वाली बात यह है कि भारत जैसे देश में तो बिजली के दाम कम होते जा रहे हैं बिजली के बिल माफ होते जा रहे हैं लेकिन यूरोप के देशों में बिजली के दाम 600% तक बढ़ चुके शुक्र मनाइए आप यूरोप में नहीं भारत में रहते इस विवाद में भारत की स्थिति भी बहुत महत्व भारत के लिए रसिया भी जरूरी है अमेरिका भी जरूरी है और यूक्रेन के साथ भी उसे अपने अच्छे रिश्ते कायम रखने है और भारत आज भी 55 % हथियार के लिए 55 से 60 % रसिया से खरीदता है।तो भारत के लिए स्थति है कि एक तरफ कुआं एक तरफ खाई एक तरफ रशिया है व्लादिमीर पुतिन है जोकि प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त हैं दूसरी तरफ जो बाइडन है जिनके प्रधानमंत्री मोदी से अभी अच्छे रिश्ते बन रहे है इसके अलावा यूक्रेन ने फरवरी 1993 में एशिया में सब से पहले जिस देश में अपना दूतावास शुरू किया था वह देश भारत ही था और इसके बाद से लगातार भारत और यूक्रेन के बीच कारोबार बढ़ रहा है सामरिक और राजनयिक संबंध भी मजबूत हुए हैं और जैसा मैंने आपको बताया हमारे 18000 मेडिकल स्टूडेंट्स भी वहां पर पढ़ रहे हैं या चाहकर भी नाराज नहीं कर सकता ।
भरता चीन विवाद पर रसिया अब तक अपने आप को इस पर निष्पक्ष रखा है जब भारत और चीन के बीच गलवान पर संघर्ष हुआ था और दोनों के बीच में जो संघर्ष अभी भी चल रहा है इसमें रूस ने अभी तक किसी का पक्ष नहीं लिया है और यह रूस अच्छी बात है नहीं तो रशिया चीन का भी पुराना दोस्त है लेकिन अगर भारत यूक्रेन का समर्थन करता है तो इससे रसिया अभी कूटनीतिक तौर पर चीन की तरफ चला जाएगा और भारत और चीन विवाद में उसका झुकाव चीन की तरफ हो जाएगा पर शायद यही वजह है कि जब हाल ही में अमेरिका समेत 10 देश यूनाइटेड नेशंस में यूक्रेन को लेकर एक प्रस्ताव लाए तो भारत में इस प्रस्ताव पर किसी के भी पक्ष में वोट नहीं किया हमारे लिए चिंता की बात यह है कि यूक्रेन में समय हमारे 20000 भारतीय फंसे हुए हैं जिनमें 18000 मेडिकल स्टूडेंट्स है वैसे ऐसा कहा जाता है कि को यूक्रेन और रसिया के रिश्तों को समझना बहुत मुश्किल है यूक्रेन के लोग स्वतंत्र तो रहना चाहते है चाहते हैं लेकिन इसके साथ ही पूर्वी यूक्रेन के लोगों में यह भावना भी बहुत मजबूत है कि यूक्रेन को रसिया का वफादार बनकर रहना चाहिए इसके अलावा यूक्रेन की राजनीति में जो तमाम नेता है बड़े-बड़े नेता वह भी दो हिस्सों में बैठे हुए एक हिस्सा वह है जो खुले तौर पर रसिया का साथ दे रहा है और दूसरा हिस्सा पश्चिमी देशों का समर्थन कर रहा है और यही वजह है कि आज यूक्रेन दुनिया की बड़ी बड़ी ताकतों के बीच फंसकर रह गया है
🇺🇦🇭🇹यही रूस और यूक्रेन विवाद का कारण🇺🇦🇭🇹